Wednesday, March 23, 2011

मालिक की मेहर

मालिक की मेहर और माता - पिता का आशीर्वाद में क्या शक्ति होती है उस का मैं अदभुद उदाहरण इस लेख के रूप में प्रदर्शित कर रहा हूँ . आज पहली बार था कि मैं अपने पुत्र की वार्षिक परीक्षा परिणाम जानने के लिए उस के विद्यालय नहीं गया था. कुछ घंटे पश्चात मुझे फ़ोन पर कंप -कंपाती आवाज़ में मुझे मेरी पत्नी ने बताया कि हमारे पुत्र को स्वर्ण पदक के साथ साथ विशेष उपाधि से सम्मानित किया गया है .यह बात सुनते ही मेरी आंखें नम हो आये और मेरे विश्ववास की जीत हुई . यह बात मेरे लिए क्या मायने रखती है इसे मैं आगे स्पष्ट करता हूँ . अब वह दस वर्ष का हो चूका है . यह बहुत ही संवेदनशील वर्ष होता है किसी भी बालक के लिए . पूरे वर्ष उसे पढाने की जिम्मेवारी मुझ पर थी और उसे चार बार कठिन परीक्षाओं का सामना करना था .पहली बार मैं उस पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाया , फिर भी परिणाम सतोषजनक था. मेरी अपनी लापरवाही के कारण ३ महीने बाद जब दूसरी परीक्षा का परिणाम आया तो लगा कि मेहनत मैं कुछ कमी है. यह मेरे लिए एक चेतावनी थी . मैने उसे पढाने मैं एक नयी विधि अपनाई परन्तु मुझ से एक चूक हो गयी . दिसम्बर मैं तीसरा परिणाम आया पर वोह भी मिश्रित ही था. पर मेरा विशवास अटल था. मेरे मालिक ने मुझ मैं १९९० मैं जो नेहमत बकशी है वो कभी भी चूक नहीं सकती . अब सिर्फ ३ महीने बचे थे वार्षिक परीक्षा में . स्थितियां पूरी तरह प्रतिकूल थी . मैने अपने लक्ष्यों को पुनर्निर्धारित कियां . परन्तु मैंने उसे कभी भी अंकों की दौड़ में नहीं दौड़ाया . मैं सिर्फ यही चाहता था कि जब परीक्षा में जाये तो अपना स्वाभाविक ज्ञान प्रदर्शन करे . इस उम्र में उस की ऊर्जा नम्बरों में व्यर्थ नहीं करना चाहता था. फ़रवरी में मुझ को यह ज्ञान हो गया कि अब मैं अपने पुत्र को वार्षिक परीक्षा के दौरान अधिक समय नहीं दे पाऊँगा . इस प्रकार अब लक्ष्य को भेद पाना लगभग असंभव था. 5 विषयों को पढाने के लिए मेरे पास सिर्फ कुल २० घंटे ही बचे थे . मैने अपना सारा अनुभव झोंक दिया . पहली परीक्षा थी . प्रातः काल का समय था.मैं गहरी निंद्रा में था. तभी मैने महसूस किया कि मेरे पाँव के पास कोई हलचल हुई है. मेरा पुत्र विद्यालय जाने के लिए बिलकुल तैयार था.व़ो मेरे उठने का इंतज़ार कर रहा था. मैने आंखें खोली . मेरे पाँव को छु कर बोला “ मेरे रब जी कहतें हैं कि परीक्षा में जाने से पहले माता पिता के पाँव अवश्य छु कर जाना ". मैने उस की आँखों में वो तड़पन देखी जिस ने मुझे हतप्रद कर दिया . उस ने एक ही पल में मुझ से सारी दुआएँ ले ली.मैंने उसे आशीवाद दिया और कहा " बेटा ! किसी भी बालक की सर्वप्रथम गुरु उस की माँ होती है , क्या तुम ने अपनी माँ से आशीर्वाद लिया ? " वो बोला : "हाँ जी पापा !". बस मुझे यकीन हो गया कि जो बच्चा जिंदगी का सबक इतनी अच्छी तरह से याद कर सकता है वो मालिक कि मेहर का सच्चा हकदार है!!! कहानी केवल यहीं नहीं ख़तम हुई ..एक विशेष विषय था जिससे मैं स्वयं अपने जीवन काल में हमेशा बचता था और वही विषय था जिससे पढाने का जिम्मा मैंने स्वयं लिया था यह जानने के लिए कि क्या मेरा जादू अध्यापक के रूप में अभी भी बरकरार है? परिणाम जो अर्धवार्षिक परीक्षा में B2 था वो अब A1 हो चुका है . यह मेरे मालिक का विशेष प्रिये बच्चा है.यही दुआ है कि उन की मेहर इस पर हमेशा बनी रहे !


एक सन्देश अपने पुत्र के नाम जो अभी मुझ से दूर है


प्रिये पुत्र ! आज तुमने यह तो जान ही लिया कि जब भी कोई बालक माँ के पास आशीर्वाद लेने आता है तो इश्वर स्वयं माँ में वास कर जाता है ....जिन भी दुर्लभ तीर्थों का पुण्य तुमने एकत्रित किया है उसे आज तुमने सार्थक किया है.. यह लेख मेरा तोहफा है तुम्हारे लिए! समझ सको तो यह अनमोल है वरना एक लेख है.
तुम्हारा पिता